Sunday, September 16, 2018

गेहूं के दानें (प्रेरणादायक कहानी)


गेहूं के दाने

एक समय की बात है  एक छोटे से गाँव में अमरसेन नामक व्यक्ति रहता था। अमरसेन बड़ा होशियार था, उसके चार पुत्र थे जिनके विवाह हो चुके थे और सब अपनी जीविका कमा रहे थे। परन्तु समय के साथ-साथ अब अमरसेन वृद्ध हो चला था ! पत्नी के स्वर्गवास के बाद उसने सोचा कि अब तक के संग्रहित धन और बची हुई संपत्ती का उत्तराधिकारी किसे बनाया जाये ? ये निर्णय लेने के लिए उसने चारो बेटों को उनकी पत्नियों के साथ बुलाया और एक-एक करके गेहूं के पाँच दानें दिए और कहा कि मै तीरथ पर जा रहा हूँ और चार साल बाद लौटूंगा और जो भी इन दानों की सही हिफाजत करके मुझे लौटाएगा तिजोरी की चाबियाँ और मेरी सारी संपत्ती उसे ही मिलेगी, इतना कहकर अमरसेन वहां से चला गया।

पहले बहु-बेटे ने सोचा बुड्ढा सठिया गया है।चार साल तक कौन याद रखता है।हम तो बड़े हैं तो धन पर पहला हक़ हमारा ही है।ऐसा सोचकर उन्होंने गेहूं के दानें फेक दिये।

दूसरे ने सोचा कि इन्हें संभालना तो मुश्किल है यदि हम इन्हे खा लें तो शायद उनको अच्छा लगे और लौटने के बाद हमें आशीर्वाद दे दे और कहे कि तुम्हारा मंगल इसी में छुपा था और सारी संपत्ती हमारी हो जाएगी यह सोचकर वे उन पाँच दानों को अन्य चावल में मिलाकर खा गए।

तीसरे ने सोचा हम रोज पूजा पाठ तो करते ही हैं और अपने मंदिर में जैसे भगवान की मूर्तियों को सँभालते हैं, वैसे ही ये गेहूं भी संभाल लेंगे और उनके आने के बाद लौटा देंगे।

चौथे बहु- बेटे ने समझदारी से सोचा और पाँचो दानों को एक-एक कर जमीन में बो दिया और उनमें से दो-तीन गेहूं के दानें सही निकले। और पौधे बड़े और अच्छे हो गये और कुछ गेहूं उग आये।फिर उन्होंने उन्हें भी बो दिया इस तरह हर वर्ष गेहूं की बढ़ोतरी होती गई।पाँच दानें पाँच बोरी, पच्चीस बोरी,और पचासों बोरियों में बदल गए।

चार साल बाद जब अमरसेन वापस आया तो सबकी कहानी सुनी और जब वो चौथे बहु-बेटों के पास गया तो बेटा बोला , ” पिताजी , आपने जो पांच दाने दिए थे अब वे गेंहूँ की पचास बोरियों में बदल चुके हैं, हमने उन्हें संभल कर गोदाम में रख दिया है, उन पर आप ही का हक़ है। ” यह देख अमरसेन ने फ़ौरन तिजोरी की चाबियाँ सबसे छोटे बहु-बेटे को सौंप दी और कहा, तुम ही लोग मेरी संपत्ति के असल हक़दार हो।

इस कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि मिली हुई जिम्मेदारी को अच्छी तरह से निभाना चाहिए और मौजूद संसाधनो, चाहे वो कितने कम ही क्यों न हों, का सही उपयोग करना चाहिए। गेंहूँ के पांच दाने एक प्रतीक हैं , जो समझाते हैं कि कैसे छोटी से छोटी शुरूआत करके उसे एक बड़ा रूप दिया जा सकता है।

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