Tuesday, October 30, 2018

Opportunity (मौका)

                    एक बार की बात है| एक व्यक्ति बहुत ही महत्वकांशी था| वो अपनी जिंदगी में बहुत कुछ चाहता था| और वो अपनी इच्छओं को पूरा करने के लिए बहुत लंबे समय से प्रयास भी कर रहा था| परंतु वो सफल नहीं हो पा रहा था| पर फिर भी उसके अंदर की महत्वकांशा अभी भी बरकरार थी| अब वो समझ चुका था कि उसकी सारी इच्छओं की पूर्ति केवल पैसे से ही पूर्ण हो सकती है| जिसका उपाय ढूंढने के  लिए वह एक महात्मा के पास पहुंचा| 


                      उसने महात्मा से कहा,"मैं अपनी जिंदगी में बहुत कुछ चाहता हूँ| और अपने परिवार वालों को भी खुशी देना चाहता हूँ| उनके सारे सपने पूरे करना चाहता हूँ। मैं काफी लंबे समय से प्रयास कर रहा हूँ और अब मैं समझ गया हूँ कि इन सब की पूर्ति केवल पैसों से ही हो सकती है| गुरु जी आप तो ज्ञानी है कृपा करके इसका समाधान बताईये|"



महात्मा मुस्कुराते हुए बोले,"तुम्हारी समस्या का समाधान बहुत ही आसान है। पर तुम्हें थोड़ा समय देना होगा।"



                      वो व्यक्ति ये सुनकर खुश हो जाता है। उम्मीद की किरण उसके मन को उजागर कर देती है। वो महात्मा से कहता है,"मुश्किल हो या आसान हो मैं उसके लिए कुछ भी करने को तैयार हूँ। अभी तक मैंने अपनी इच्छओं को पूरा करने के लिए बहुत प्रयास किया है। मैं और प्रयास करने को तैयार हूँ। आप मुझे बताईये क्या करना है।"



महात्मा कहते है,"एक कंकड़ है जो तुम्हें समुद्र तट के किनारे मिलेगा। उस कंकड़ से तुम जिसे भी छुओगे वो सोने का हो जायेगा। और तुम्हारी धन संबंधी समस्या का समाधान हो जायेगा।"



वो व्यक्ति उत्सुक होते हुए पूछता है,"वहां पर तो बहुत सारे कंकड़ होंगे।इतने सारे कंकडों में से मैं उसे पहचानूंगा कैसे?"



महात्मा कहते है,"तुम उसे उसके तापमान से पहचानोगे। बाकी सारे कंकड़ ठंडे किस्म के होंगे। और वो जो तुम ढूंढ रहे हो वो थोड़ा गरम किस्म का होगा।"



                     वो व्यक्ति खुश हो गया| उसके मन में विचार था कि ये तो आसान है। जैसे मैं रोज अपना काम करता हूँ वैसे ही मुझे थोड़ा सा समय निकालकर वहाँ जाना है। थोड़ा-थोड़ा रोज मैं अपना समय दूंगा तो एक दिन जरूर मुझे वो मिल जायेगा।




                     वो उस दिन खुश होकर घर गया। और चैन से सोया। उसे मालूम था कि उसकी सारी इच्छाएं पूरी होने वाली है। अगले दिन वो सुबह उठा। और समुद्र तट पर चले गया। काम बहुत सरल था। बस एक-एक कंकड़ को हाथ में पकड़ना था। और गर्म कंकड़ को पहचानना था।



                    वो धीरे-धीरे हर एक कंकड़ को बारीकी से परखता गया। वो कंकड़ हाथ में पकड़ता और अगर कंकड़ ठंडा महसूस होता तो वो उसे समुद्र में फेंक देता था। ताकि वो बांकी कंकडों से अलग रहे। एक दिन बीत गया। फिर दूसरा दिन भी बीत गया। और वो ऐसे ही बारीकी से कंकड़ को परखता चला गया।



                        कुछ दिन और बीत गए। वो वैसे ही बारीकी से परखता रहा। फिर एक सप्ताह बीता, फिर एक महीना और ऐसे करते-करते तीन महीने बीत गए। अब तक उसके हाथ वो अनमोल कंकड़ नहीं लगा। अब उसकी उस कंकड़ को बारीकी से परखने की आदत छूट चुकी थी। अब वो इस कार्य को उतनी बारीकी से नहीं कर रहा था जितना वो पहले दिन कर रहा था। अब वो कंकड़ हाथ से पकड़ता और सीधे समुद्र में फेंक देता था। यानी अब उसने उस कार्य को हल्के में लेना शुरू कर दिया। और यही उसकी आदत बन चुकी थी।



                       एक दिन वो ऐसे ही वो कंकड़ ढूंढ रहा था। और हाथ में कंकड़ लेकर उसे समुद्र में फेंक रहा था। तो उसके हाथ में वो अनमोल कंकड़ आया। परंतु जब तक उसे उसकी गर्मी का एहसास होता उसने उस कंकड़ को भी जल्दी से समुन्द्र में फेंक दिया। उसकी कार्य को हल्के में लेने की आदत से उसने वो अनमोल पत्थर हाथ में होते हुए भी गवां दिया। अब वो पछताने लगा क्योंकि अब उसे दोबारा प्राप्त करना अब संभव नहीं था।




प्रिय पाठक,

 हमारी जिंदगी में भी वो कंकड़ हमेशा विद्यमान है। वो कंकड़ एक "मौका" है। जो आपकी जिंदगी बदल सकता है। हम सभी लोग अपनी जिंदगी बदलना चाहते है। और उसके लिए योजना (plan) भी बनाते है। पहले दो-चार दिन बहुत ही ध्यान से उसमें लगे रहते है। और उस वक़्त हममें उत्साह भी बहुत होता है। लेकिन धीरे-धीरे जब उस प्रयास के अनुरूप हमें परिणाम नहीं मिलता तब हमारा उत्साह और दृष्टिकोण बदलने लगता है। और हम फिर उसके प्रति उतना ध्यान नहीं देते। यानी हर एक चीज को हल्के में लेने लगते है। और यही धीरे-धीरे हमारी आदत बन जाती है। और फिर एक दिन जब एक बेहतरीन "मौका" हमसे टकराता है। तो हर चीज को हल्के लेने की आदत के कारण हम उस मौके को भी हल्के में ले लेते है। और अपनी जिंदगी को बदलने का मौका गवां देते है। इसीलिए अपनी आदतों पर ध्यान दीजिए। अपनी आदतों को अपना साथी बनाइये। ताकि जब भी आपकी जिंदगी में मौका आये तो अपनी आदतों के कारण आपको वो गवाना न पड़े।





आपको आपके बेहतर भविष्य के लिए शुभकामनाएं।
धन्यवाद।

Saturday, October 6, 2018

No Pain No Gain (किस तरह जिंदगी आपको बदलने का मौका देती है?)

बिना मुश्किलों से गुजरे कुछ हासिल नहीं होता 

                     एक बार की बात है। एक गांव में एक बहुत प्रसिद्ध मूर्तिकार रहता था। वो स्वभाव से बहुत ही उदार था। उसकी प्रसिद्धि इतनी थी कि लोगों का मानना था कि वो जिस पत्थर को छू लेता है वो एक बेहतरीन मूर्ति में तब्दील हो जाता है।



                     मूर्तिकार रोज अपने कार्य के लिए शहर जाया करता था। एक दिन की बात है वो रोज की ही तरह शहर जा रहा था। उस दिन धूप बहुत ज्यादा थी। उस गर्मी से परेशान होकर उसने थोड़ा आराम करने का निश्चय किया।



                     थोड़ी दूर पर ही एक बड़ा पेड़ देखकर वो उसकी छाया में आराम करने के लिए बैठ गया। कुछ समय आराम करने के बाद उसे लगा कि उसे अपना समय व्यर्थ नहीं जाने देना चाहिए। ये सोचकर उसने अपने थैले से अपने औज़ार निकाले और पास ही में पड़े एक पत्थर को उठाया। और एक सुंदर कृति बनाने के उद्देश्य से उस पर चोट मारने लगा। जैसे ही पत्थर को हथोड़े से पहली चोट पड़ी वो दर्द भरी आवाज़ में करहाने लगा। और दूसरी चोट पड़ते ही वो चिल्लाया , " नहीं मुझे मत मारो। मैं जैसा हूँ मुझे वैसा ही छोड़ दो। मैं नहीं बदलना चाहता। मैं जैसा हूँ वैसा ही अच्छा हूँ।"


                      उस पत्थर की उस पीड़ा को देखकर उसने उसे उसकी जगह पर वापस रख दिया। इस पर वो पत्थर बहुत खुश हुआ।



                      मूर्तिकार ने उसी के बगल में पड़ा दूसरा पत्थर उठाया। और एक सुंदर मूर्ति बनाने की उद्देश्य से उस पर चोट मारना शुरू किया। इस पत्थर ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। वो चुप-चाप रहा। कुछ समय बाद उस मूर्तिकार ने अपने कौशल का प्रयोग कर के भगवान की एक सुंदर मूर्ति का निर्माण कर दिया। समय भी काफी बीत चुका था और अब धूप भी हल्की हो गयी थी। उस मूर्तिकार ने बनाई गई उस मूर्ति को उस पेड़ के नीचे रखा और अपने काम पर चल दिया।




                   

                      धीरे-धीरे समय बीता। एक दो महीने बाद वो मूर्तिकार उसी रास्ते से गुजर रहा था। उसे एक पेड़ के चारों ओर बहुत भीड़ दिखी। अब ये पता लगाने कि वहां क्या चल रहा है वो उस पेड़ की ओर बढ़ा। जैसे ही वो पेड़ की नजदीक पहुँचा उसे याद आया कि ये तो वहीं पेड़ है जिसके नीचे एक दिन उसने आराम किया था। भीड़ का कारण जानने के लिए वो भीड़ के समीप गया। वहां देखा तो वहाँ उस मूर्ति की पूजा हो रही थी। वो मूर्ति वही थी जो उस मूर्तिकार ने बनाई थी। उसके गुणगान किये जा रहे थे। उस पर फूल चढ़ाये जा रहे थे। फिर उसकी नज़र उसके पास ही पड़े अन्य पत्थर पर पड़ी। वो वह पत्थर था जिसे उस मूर्तिकार ने उस दिन मूर्ति बनाने की उद्देश्य से सबसे पहले उठाया था लेकिन उसने थोड़ी सी चोट पड़ने पर करहाना शुरू कर दिया था। और खुद को बदलने से इनकार कर दिया था। उस पत्थर पर लोग नारियल फोड़ कर उस सुंदर मूर्ति को चढ़ा रहे थे।




               Ladies and gentlemen, इस मूर्तिकार की तरह ही ईश्वर भी एक मूर्तिकार की ही तरह सभी को सुंदर और योग्य बनाने के लिए अलग-अलग तरह से चोट मारता है। पर हम में से कुछ लोग उसकी चोट से डरकर, उस से होने वाले दर्द से डर कर खुद को बदलने से इनकार कर देते है। और उसी स्थिति में रहना पसंद करते है जिसमें  वो पहले से होते है। और इसी तरह गुमनामी में हम पूरी जिंदगी गुजार देते है। तो दोस्तों अगर आप चाहते है कि आप सबसे अलग कुछ कर दिखाए तो ईश्वर द्वारा दी जा रही चोट को स्वीकार करिये और खुद को बदलते रहिये।





आपको आपके सुंदर भविष्य के लिए शुभकामनाएं।
धन्यवाद।




Thursday, October 4, 2018

सही रास्ता (The Right Path)


सही रास्ता 


                   एक बार एक छोटा सा गांव था। गांव चारों तरफ से घने जंगल से घिरा था। गांव में कालू नामक एक गधा रहता था। उसका गांव में किसी से ज्यादा मेल-जोल नहीं था। ना उससे कोई मिलने आता था और न ही वह किसी और से मिलने जाता था। क्योंकि वो ज्यादातर समय अकेले बिताता था इसीलिए उसके मन में नए-नए विचार आते रहते थे।

                 एक बार गधे ने सोचा क्यों ना इस घने जंगल के उस पार जाकर देखा जाए कि आखिर उस तरफ है क्या?


                 अगले दिन वो सुबह-सुबह जंगल की ओर चल दिया। जंगल बहुत घना था और गधा मूर्ख। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। वो जहाँ मन करता वहां की ओर चलता जाता था। जैसे-तैसे कुछ दिनों बाद उसने वो जंगल पार कर लिया और दूसरी ओर  स्थित एक और गाँव पहुँच गया।



                  वहाँ गाँव में खूब हल्ला होने लग गया कि कालू गधा गाँव छोड़ कर चला गया है।सब बात करने लगे कि वो कितना भाग्यशाली है, और अब कितनी आराम की ज़िन्दगी जी रहा होगा। लोगों की बात सुनकर कुत्तों  के एक झुण्ड ने भी जंगल पार करने का निश्चय किया।



                  अगली सुबह वह गधे की गंध का पीछा करते हुए उसी रास्ते से जंगल के उस पार चले गए।


                 और धीरे-धीरे गाँव के अन्य पशुओं में भी जंगल पार करने की होड़ सी लग गयी और सभी उस गधे द्वारा खोजे गए रास्ते पर चलते हुए जंगल पार करने लगे।


                  उस रास्ते पर बार-बार इतने जानवरो के चलने के कारण एक रास्ता सा बन गया। समय बीतता गया और कुछ सालों बाद गांव के लोग भी उसी रास्ते पर चलकर जंगल पार करने लगे। कुछ सालों बाद गाँव की आबादी भी काफी बढ़ गयी। तब सरकार ने जंगल पार करने के लिए एक रोड बनाने का फैसला किया।


                 सरकार ने इस कार्य के लिए  इंजीनियरों का एक दल नियुक्त किया।वो दल गांव आ कर इलाके की स्टडी करने लगा।

                गांव वालों ने उन्हें कहा कि जंगल को पार करने के लिए एक रास्ता पहले से ही बना हुआ है। उसी पर अगर रोड बना दी जाए तो अच्छा रहेगा।

                   उनकी बात सुनकर चीफ इंजीनियर थोडा मुस्कुराया और बोला, “क्या मैं जान सकता हूँ ये रास्ता किसने बनाया ?”


                    गाँव के एक बुजुर्ग बोले, “जहाँ तक मुझे पता है ये रास्ता किसी गधे ने खोजा था!”, और उसने पूरी कहानी सुनाई ।


                   उनकी बात सुनने के बाद चीफ इंजीनियर बोले,  “मुझे यकीन नहीं होता कि आप सब इंसान होते हुए भी इतने सालों से एक गधे के बनाये रास्ते पर चल रहे थे। पता है ये रास्ता कितना कठिन और लम्बा है जबकि हमने जो रास्ता खोजा है वो इसका एक चौथाई भी नहीं है और उसे पार करना भी कहीं आसान है। ”



                  इतने समय बाद आज गाँव वालों को अपनी गलती का एहसास हो रहा था। वे सोच रहे थे कि काश उन्होंने एक नया रास्ता खोजने का प्रयास किया होता तो वो इतने सालों से इतने लंबे और कठिन रास्ते पर नहीं चल रहे होते।


                 हमारी जिंदगी के बहुत से कार्य हम भी इन गांव वालों की तरह ही करते है। जो कुछ पहले लंबे समय से हो रहा होता है। उसी पर आंख बंद कर के विश्वास कर के उसी का अनुसरण करते जाते है। उस पर इतना विश्वास होता है हमें, कि वो सही है या गलत इसका भी हम अंदाज़ नहीं लगाते और उसी में इतना लीन रहते है कि कुछ नया खोजने और नया करने की अपनी असीम शक्ति का प्रयोग नहीं करते और अपना जीवन व्यर्थ गांव देते है।
हमें अपनी गलती का एहसास वास्तव में तब होता है जब कोई व्यक्ति हमसे उसका कारण पूछता है। तब हम उस बात की गहराई में जाते है। और उसकी सच्चाई हमें तब पता लगती है। ऐसी परिस्थितियों से निपटने के लिए हमे अपना विवेक जागृत करना होगा। हमें अपने अंदर के दृष्टिकोण को जगाना होगा। तभी हम सही-गलत का फैसला कर पाएंगे। और साथ ही हमें जीवन में स्वयं का अच्छा मार्गदर्शन भी प्राप्त हो पाएगा।



आपको आपके बेहतर भविष्य के लिए शुभकामनाएं।
धन्यवाद।

Monday, October 1, 2018

दुनिया का एक ऐसा व्यक्ति जिसके पास कोई समस्या नहीं है।





दुनिया का एक ऐसा व्यक्ति जिसके पास कोई समस्या नहीं है।



                  एक बार की बात है। दुर्गम पहाड़ियों में एक महान पंडित रहते थे। वे इतने महान थे कि लोग अपनी समस्याओं का समाधान प्राप्त करने उनके पास आया करते थे। उनकी प्रसद्धि इतनी थी कि दुर्गम पहाड़ियों पर रहने के बावजूद भी लोग उन्हें ढूंढते हुए उन कठिन रास्तों, दुर्गम पहाड़ियों और गहन जंगल से भरे हुए रास्तो को पार करके भी उनके घर पर  पहुँच जाते थे। लोगो का मानना था कि वे उनकी कठिन से कठिन समस्या का समाधान दे सकते है।

                  उनके पास एक दिन में इतने लोग आते थे कि उन्हें अपने लिए समय नहीं मिल पाता था। अब वो लोगों के बीच रहकर थक चुके थे। और अब वे भगवान की भक्ति में समय व्यतीत करते हुए सादा जीवन व्यतीत करना चाहते थे। इसीलिए वे अब हिमालय जाकर रहने लगे।

                  उन्हें लगा कि लोग इतनी मुश्किल जगह तो नहीं आएंगे। पर उनकी प्रसिद्धि के कारण इस बार भी कुछ लोग ढूंढते हुए उसकी कुटिया तक आ पहुंचे। पंडित जी ने उन्हें दो-तीन दिन इंतज़ार करने के लिए कहा ।

                 तीन दिन बीत गए , अब और भी कई लोग वहां पहुँच गए। जब लोगों के लिए जगह कम पड़ने लगी तब पंडित जी बोले , "आज मैं आप सभी के प्रश्नो का उत्तर दूंगा। पर आपको वचन देना होगा कि यहाँ से जाने के बाद आप किसी और को इस स्थान के बारे में नहीं बताएँगे । ताकि आज के बाद मैं एकांत में रह कर अपनी साधना कर सकूँ। चलिए अपनी-अपनी समस्याएं बताइये।"



                   यह सुनते ही किसी ने अपनी परेशानी बतानी शुरू की।लेकिन वह अभी कुछ शब्द ही बोल पाया था कि बीच में किसी और ने अपनी बात कहनी शुरू कर दी। सभी जानते थे कि आज के बाद उन्हें कभी पंडित जी से बात करने का मौका नहीं मिलेगा।इसलिए वे सब जल्दी से जल्दी अपनी बात रखना चाहते थे ।कुछ ही देर में वहां का दृश्य मछली-बाज़ार जैसा हो गया और अंततः पंडित जी को चीख कर बोलना पड़ा , "कृपया शांत हो जाइये। अपनी-अपनी समस्या एक पर्चे पर लिखकर मुझे दीजिये।“


                 सभी ने अपनी-अपनी समस्याएं लिखकर आगे बढ़ा दी। पंडित जी ने सारे पर्चे लिए और उन्हें एक टोकरी में डाल कर मिला दिया और बोले , ” इस टोकरी को एक-दूसरे को पास कीजिये।  हर व्यक्ति एक पर्ची उठाएगा और उसे पढ़ेगा। उसके बाद उसे निर्णय लेना होगा कि क्या वो अपनी समस्या को इस समस्या से बदलना चाहता है ?”



               हर व्यक्ति एक पर्चा उठाता। उसे पढ़ता और सहम सा जाता। एक-एक कर के सभी ने पर्चियां देख ली। पर कोई भी अपनी समस्या के बदले किसी और की समस्या लेने को तैयार नहीं हुआ। सबका यही सोचना था कि उनकी अपनी समस्या चाहे कितनी ही बड़ी क्यों न हो बाकी लोगों की समस्या जितनी गंभीर नहीं है। दो घंटे बाद सभी अपनी-अपनी पर्ची हाथ में लिए लौटने लगे। वे खुश थे कि उनकी समस्या उतनी बड़ी भी नहीं है जितना कि वे सोचते थे।


                 Friends, हम सभी अनेक समस्याओं से ग्रस्त है। लेकिन हमें अपनी समस्या इतनी बड़ी लगती है कि हमें लगता है कि सामने वाला सुखी है। लेकिन वो भी अपनी समस्या से उतना ही परेशान होता है जितना कि हम। वो हिंदी में एक कहावत है - "दुसरों के खेत की फसल हमेशा हरी भरी लगती है।" इंसान भी दैनिक जीवन की इसी कहावत की तरह सोचता है। उसे लगता है कि वो ही दुखी है लेकिन वास्तव में उसकी समस्या बहुत ही छोटी होती है। अगर हमारे सामने ये सृष्टि कोई समस्या लाती है तो वो उससे निपटने की शक्ति भी हमें प्रदान करती है। इसीलिए हमें अपनी समस्या को एक तरह की चुनौती मानकर उससे निपटना चाहिए।


आपके उज्ज्वल भविष्य के लिए मेरी ओर से शुभकामनाएं।
धन्यवाद।

बुरे वक्त में क्या करें?

                   एक बार की बात है एक राजा था। वो विनम्र स्वभाव का था। लोगों की सेवा करना वो अपना धर्म समझता था। एक बार उस राजा के पास एक ...