Friday, September 28, 2018

अपनी समस्याओं से कैसे निपटें?


अपनी समस्याओं से कैसे निपटें?


               
                एक बार की बात है। एक व्यक्ति अपने गधे को लेकर शहर से अपने घर लौट रहा था। रात हो चली थी इसलिए रास्ता ढंग से दिखाई नही दे रहा था। फिर भी वो ध्यान से अपने गधे को ले जा रहा था। पर अचानक गधे का पैर फिसला और वो एक गड्ढे में गिर गया। उस व्यक्ति ने बहुत कोशिश की परंतु वो उसे बाहर निकलने में असफल रहा।




                 रात बहुत हो चुकी थी। खुद को सुरक्षित रखने के लिए उसने वहाँ से जाना उचित समझा। अंधेरा भी हो रहा था तो उस व्यक्ति को लगा कि उसके गधे को उस गड्ढे से निकालना अब असंभव है। उसने उसे जिन्दा ही मिटटी से ढक देने का सोचा और वह ऊपर से मिटटी डालने लगा । बहुत देर तक मिटटी डालने के बाद वो पास ही के एक गांव में चला गया।



                  ढ़ेर सारी मिट्टी ने उस गधे को ऊपर आने में मदद की। जब भी वो व्यक्ति उसके ऊपर मिट्टी डालता तो वो गधा अपना शरीर हिलाकर उस मिट्टी को गिरा देता था। अपने ऊपर गिरी हुए मिटटी की मदद से धीरे-धीरे उस पर अपना पैर रख-रख कर उस गड्ढे के ऊपर जिन्दा चढ़ आया । अगले दिन जब वह व्यक्ति सुबह उठा तो उसने देखा उसका गधा उसके घर के बाहर ही खड़ा था । यह देखकर वो व्यक्ति आश्चर्यचकित रह गया।



हमारी जिंदगी में भी कभी-कभी कुछ समस्याएं हमारे ऊपर इतनी हावी हो जाती है कि हम बहुत ज्यादा चिंतित और उदास हो जाते है। हमारी उम्मीद के सारे रास्ते बंद प्रतीत होते है। और हम हर मान लेते है। जब हम ऐसी परिस्तिथियों का सामना करते है तो हमें ये बात ध्यान में रखनी चाहिए कि जब ये संसार या भगवान हमारे सामने कोई समस्या पैदा करता है टैब उसी वक़्त वो उससे निपटने की ताकत भी हममें भर देता है। हैम उस समस्या को हल कर सकते है। बस यही विश्वास आपके मन में होना चाहिए। और आप इसी विश्वास के साथ सभी समस्याओं का हल प्राप्त कर लेंगे। और एक सुखी और संतुष्टि का जीवन व्यतीत करेंगे।


धन्यवाद।
और आपको आपके सुंदर और संपन्न भविष्य के लिए शुभकामनाएं।

Tuesday, September 25, 2018

अहंकार (EGO)


अहंकार 


             एक 45 साल का व्यक्ति अपनी बैल गाड़ी पर अनाज की एक बोरी चढ़ाने की कोशिश कर रहा था। उसे बोरी चढ़ाने में थोड़ी परेशानी हो रही थी क्योंकि वो भारी थी। तभी वहाँ से जा रहा एक नौजवान  उनकी ओर आया और बोला, ” आप जिस तरीके से बोरी चढ़ा रहे हैं वो गलत है। मेरे पास एक आसान तरीका है।”

            वो इस नौजवान की ये बात सुनकर गुस्सा हो गए और बोले , ” भाई तुम अपना काम करो।मैं इससे भी भारी बोरी चढ़ा चुका हूँ ।मुझे सारे तरीके पता है।"

           "यानि पहले भी आपने गलत तरीका इस्तेमाल किया होगा। “ उस नौजवान ने कहा।

           यह सुन उसने  बोरी छोड़ी। अपने हाथ झाड़े और गुस्से से बोले,  "तुम नौजवानो की यही समस्या है।थोड़ा पढ़-लिख लेते हो तो खुद को बहुत होशियार समझने लगते हो। ये नहीं जानते की हम सालों से यही काम कर रहे हैं। चले आते हो अपनी बुद्धि लगाने।"

             नौजवान उनकी बात पर मुस्कुराया  और बोला , "आपकी मर्जी, मैं तो आपके भले की बात कर रहा था।” और ये कहकर वो नौजवान जाने लगा।

             लेकिन तभी उस व्यक्ति को लगा कि क्यों न उसकी बात सुन ही ली जाए, अगर ठीक हुई तो सही नहीं तो जैसे काम होता आया है वैसे ही होता रहेगा।
             "सुनो लड़के ! बताओ तुम कौन सा तरीका बता रहे थे।”  वो बोले।

             वो नौजवान फ़ौरन उनके पास आया और इशारे से उन्हें बोरी के दूसरी तरफ जाने को कहा।

            “चलिए , अब आप उधर से पकड़िए और मैं इधर से पकड़ता हूँ। दोनों मिलकर उठाते हैं।” नौजवान बोला और फ़ौरन बोरी बैलगाड़ी पर जा पहुंची।



वे मुस्कुराये, आज एक अनजान नौजवान ने उन्हें एक बड़ी सीख दे दी थी।

इससे अपनी जिंदगी में दो सीख अपनायी जा सकती है। पहली ये कि ये जरूरी नहीं कि जो तरीके बहुत पहले से चले आ रहे है वो हमेशा ही सही हो और दूसरी ये कि इस दुनिया में अगर कोई भी काम सहयोग और सहानुभूति की भावना से किया जाए तो उस कार्य को आसानी से और बिना अधिक समय लिए किया जा जा सकता है।  वो हम और आप ही है जो इस दुनिया को बेहतर बना सकते है।


आपको आपके बेहतर भविष्य के लिए शुभकामनाएं।
धन्यवाद।

Sunday, September 23, 2018

साहसी बनो! तभी जिंदगी में कुछ मुकाम हासिल हो पाएगा


साहसी बनो! तभी जिंदगी में कुछ मुकाम हासिल हो पाएगा


              गर्मियों की छुट्टियां थी। हर साल करन कहीं ना कहीं घूमने जाया करता था। इस बार करन और उसके दोस्तों ने पहाड़ी इलाके में पर्वतारोहण ( mountaineering) करने का निश्चय किया।




              जिसके लिए गाइड उन्हें एक फेमस माउंटेनियरिंग स्पॉट पर ले गया. करन और उसके दोस्तों ने सोचा नहीं था कि यहाँ इतनी भीड़ होगी. हर तरफ लोग ही लोग नज़र आ रहे थे।

एक दोस्त बोला, ” यार यहाँ तो शहर जैसी भीड़ है…यहाँ चढ़ाई करने में क्या मजा?”

“क्या कर सकते हैं… अब आ ही गए हैं तो अफ़सोस करने से क्या फायदा…चलो इसी का मजा उठाते हैं…”, करन ने जवाब दिया.
सभी दोस्त पर्वतारोहण करने लगे और कुछ ही समय में पहाड़ी की चोटी पर पहुँच गए।

                वहां पर पहले से ही लोगों का तांता लगा हुआ था।दोस्तों ने सोचा चलो अब इसी भीड़ में दो-चार घंटे कैम्पिंग करते हैं।और फिर वापस चलते हैं।तभी करन ने सामने की एक चोटी की तरफ इशारा करते हुए कहा, “रुको-रुको… ज़रा उस चोटी की तरफ भी तो देखो।वहां तो बस मुट्ठी भर लोग ही दिख रहे हैं। कितना मजा आ रहा होगा… क्यों न हम वहां चलें।”

“वहां!”, एक दोस्त बोला, “अरे वहां जाना सबके बस की बात नहीं है।उस पहाड़ी के बारे में मैंने सुना है, वहां का रास्ता बड़ा मुश्किल है और कुछ लकी लोग ही वहां तक पहुँच पाते हैं.”

बगल में खड़े कुछ लोगों ने भी करन का मजाक उड़ाते हुए कहा,” भाई अगर वहां जाना इतना ही आसान होता तो हम सब यहाँ झक नहीं मार रहे होते!”

                 लेकिन करन ने किसी की बात नहीं सुनी और अकेला ही चोटी की तरफ बढ़ चला।और तीन घंटे बाद वह उस पहाड़ी के शिखर पर था।वहां पहुँचने पर पहले से मौजूद लोगों ने उसका स्वागत किया और उसे प्रोत्साहित किया।

करन भी वहां पहुँच कर बहुत खुश था।अब वह शांति से प्रकृति की ख़ूबसूरती का आनंद ले सकता था।

जाते-जाते करन ने बाकी लोगों से पूछा  ”एक बात बताइये… यहाँ पहुंचना इतना मुश्किल तो नहीं था।मेरे ख़याल से तो जो उस भीड़-भाड़ वाली चोटी तक पहुँच सकता है।वह अगर थोड़ी सी और मेहनत करे तो इस चोटी को भी छू सकता है।फिर ऐसा क्यों है कि वहां सैकड़ों लोगों की भीड़ है और यहाँ बस मुट्ठी भर लोग?”

वहां मौजूद एक प्रशिक्षक माउंटेनियर बोला, “क्योंकि ज्यादातर लोग बस उसी में खुश हो जाते हैं जो उन्हें आसानी से मिल जाता।वे सोचते ही नहीं कि उनके अन्दर इससे कहीं ज्यादा पाने का सामर्थ्य (Potential) है।और जो थोड़ा पाकर खुश नहीं भी होते वे कुछ अधिक पाने के लिए  रिस्क नहीं उठाना चाहते। वे डरते हैं कि कहीं ज्यादा के चक्कर में जो हाथ में है वो भी ना चला जाए। जबकि हकीकत ये है कि अगली चोटी या अगली मंजिल पाने के लिए बस जरा से और प्रयास की ज़रुरत पड़ती है। पर साहस ना दिखा पाने के कारण अधिकतर लोग पूरी लाइफ बस भीड़ का हिस्सा ही बन कर रह जाते हैं।और साहस दिखाने वाली उन मुट्ठी भर लोगों को लकी बता कर खुद को तसल्ली देते रहते हैं.”

                  इसी प्रकार हम भी अपने आप को इसी भीड़ में छुपाये अपने को सुरक्षित महसूस करते है।और अपनी क्षमताओं का पूरा-पूरा उपयोग ना करते हुए जो मिला है उसी में संतुष्ट हो जाते है।और जब समय गुजर जाता है तो किस्मत तो दोष देकर खुद को झूठी सांत्वना दे कर बाकी बचा जीवन भी गुजार देते है।

तो दोस्तो भीड़ का हिस्सा मत बनिये ...साहस दिखाईये और आगे बढ़िए।

आप सभी को मेरी ओर से बेहतर भविष्य के लिए शुभकामनाएं।
धन्यवाद।।

Saturday, September 22, 2018

मूर्ख गधा (प्रेरणादायक कहानी)


मूर्ख गधा

                   एक बार दो गधे अपनी पीठ पर बोझा उठाये चले जा रहे थे, उनको काफी लंबा सफर तय करना था।एक गधे की पीठ पर नमक की भारी बोरियां लदी हुई थीं तो एक की पीठ पर रूई की बोरियां लदी हुई थीं।जिस रास्ते से वो जा रहे थे उस बीच में एक नदी थी।नदी के ऊपर रेत की बोरियों का कच्चा पुल बना हुआ था।जिस गधे की पीठ पर नमक की बोरियां थीं, उसका पैर बुरी तरह से फिसल गया और वह नदी के अंदर गिर पड़ा।नदी से उठने तक में उसे जो समय लग उसमें बोरियों का नमक पानी में घुल गया और उसका वजन हल्का हो गया।वह यह बात बड़ी प्रसन्नता से दूसरे को बताने लगा।दूसरे गधे ने सोचा कि यह तो बढ़िया युक्ति है, ऐसे में तो मैं भी अपना भार काफी कम कर सकता हूँ और उसने बिना सोचे समझे पानी में छलांग लगा दी, किन्तु रूई के पानी सोख लेने के कारण उसका भार कम होने की जगह बहुत बढ़ गया।जिस कारण वह गधा पानी में डूब गया।

                  एक संत यह सारा किस्सा अपने शिष्यों के साथ देख रहे थे, उन्होंने अपने शिष्यों से कहा- “मनुष्य को सदा अपना विवेक जागृत रखना चाहिए, बिना अपनी बुद्धि लगाए दूसरों की नकल कर वैसा ही करने वाले सदा उपहास के पात्र बनते हैं। ”

                  मित्रों हमारी असल जिंदगी में भी यही बात लागू होती है।हम किसी को एक क्षेत्र में सफल होते देख उसे कॉपी करना शुरू कर देते हैं। हमें लगता है कि यदि कोई व्यक्ति अपने क्षेत्र में सफल हो गया तो हमें भी उस क्षेत्र में सफलता मिल जायेगी लेकिन हम शायद यह ध्यान नहीं देते कि उसके पीठ पर नमक वाली बोरी है।मतलब उसकी रुचि (intrest) अलग है और भूलवश हम रूई की बोरी को लादे छलांग लगा देते हैं।मतलब दूसरा टैलेंट या इंटरेस्ट को लादे उस क्षेत्र में सफल होने का ख्वाब देखते है और अंततः हमें पछताना पड़ता है। इसलिए , दूसरों को देखकर सीखना ठीक है पर उनका अंधा अनुसरण करना उस मूर्ख गधे के समान व्यवहार करना है।



मैं उम्मीद करता हूँ कि इस कहानी से मिली सीख को आप अपने जीवन मे लागू करेंगे। और अपने जीवन को बेहतर बनाएंगें।

Sunday, September 16, 2018

गेहूं के दानें (प्रेरणादायक कहानी)


गेहूं के दाने

एक समय की बात है  एक छोटे से गाँव में अमरसेन नामक व्यक्ति रहता था। अमरसेन बड़ा होशियार था, उसके चार पुत्र थे जिनके विवाह हो चुके थे और सब अपनी जीविका कमा रहे थे। परन्तु समय के साथ-साथ अब अमरसेन वृद्ध हो चला था ! पत्नी के स्वर्गवास के बाद उसने सोचा कि अब तक के संग्रहित धन और बची हुई संपत्ती का उत्तराधिकारी किसे बनाया जाये ? ये निर्णय लेने के लिए उसने चारो बेटों को उनकी पत्नियों के साथ बुलाया और एक-एक करके गेहूं के पाँच दानें दिए और कहा कि मै तीरथ पर जा रहा हूँ और चार साल बाद लौटूंगा और जो भी इन दानों की सही हिफाजत करके मुझे लौटाएगा तिजोरी की चाबियाँ और मेरी सारी संपत्ती उसे ही मिलेगी, इतना कहकर अमरसेन वहां से चला गया।

पहले बहु-बेटे ने सोचा बुड्ढा सठिया गया है।चार साल तक कौन याद रखता है।हम तो बड़े हैं तो धन पर पहला हक़ हमारा ही है।ऐसा सोचकर उन्होंने गेहूं के दानें फेक दिये।

दूसरे ने सोचा कि इन्हें संभालना तो मुश्किल है यदि हम इन्हे खा लें तो शायद उनको अच्छा लगे और लौटने के बाद हमें आशीर्वाद दे दे और कहे कि तुम्हारा मंगल इसी में छुपा था और सारी संपत्ती हमारी हो जाएगी यह सोचकर वे उन पाँच दानों को अन्य चावल में मिलाकर खा गए।

तीसरे ने सोचा हम रोज पूजा पाठ तो करते ही हैं और अपने मंदिर में जैसे भगवान की मूर्तियों को सँभालते हैं, वैसे ही ये गेहूं भी संभाल लेंगे और उनके आने के बाद लौटा देंगे।

चौथे बहु- बेटे ने समझदारी से सोचा और पाँचो दानों को एक-एक कर जमीन में बो दिया और उनमें से दो-तीन गेहूं के दानें सही निकले। और पौधे बड़े और अच्छे हो गये और कुछ गेहूं उग आये।फिर उन्होंने उन्हें भी बो दिया इस तरह हर वर्ष गेहूं की बढ़ोतरी होती गई।पाँच दानें पाँच बोरी, पच्चीस बोरी,और पचासों बोरियों में बदल गए।

चार साल बाद जब अमरसेन वापस आया तो सबकी कहानी सुनी और जब वो चौथे बहु-बेटों के पास गया तो बेटा बोला , ” पिताजी , आपने जो पांच दाने दिए थे अब वे गेंहूँ की पचास बोरियों में बदल चुके हैं, हमने उन्हें संभल कर गोदाम में रख दिया है, उन पर आप ही का हक़ है। ” यह देख अमरसेन ने फ़ौरन तिजोरी की चाबियाँ सबसे छोटे बहु-बेटे को सौंप दी और कहा, तुम ही लोग मेरी संपत्ति के असल हक़दार हो।

इस कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि मिली हुई जिम्मेदारी को अच्छी तरह से निभाना चाहिए और मौजूद संसाधनो, चाहे वो कितने कम ही क्यों न हों, का सही उपयोग करना चाहिए। गेंहूँ के पांच दाने एक प्रतीक हैं , जो समझाते हैं कि कैसे छोटी से छोटी शुरूआत करके उसे एक बड़ा रूप दिया जा सकता है।

Tuesday, September 11, 2018

सब सही है


सब सही है 
मास्टर जी क्लास में पढ़ा रहे थे,तभी पीछे से दो बच्चों के आपस में झगड़ा करने की आवाज़ आने लगी।
“क्या हुआ तुम लोग इस तरह झगड़ क्यों रहे हो ? ”, मास्टर जी ने पूछा।
राहुल : सर,अमित अपनी बात को लेकर अड़ा है और मेरी सुनने को तैयार ही नहीं है।
अमित : नहीं सर,राहुल जो कह रहा है वो बिलकुल गलत है इसलिए उसकी बात सुनने से कोई फायदा नही। और ऐसा कह कर वे फिर तू-तू मैं-मैं करने लगे।
मास्टर जी ने उन्हें बीच में रोकते हुए कहा,”एक मिनट तुम दोनों यहाँ मेरे पास आजाओ। राहुल तुम डेस्क की बाईं और अमित तुम दाईं तरफ खड़े हो जाओ।“ इसके बाद मास्टरजी ने बैग से एक बड़ी सी गेंद निकाली और डेस्क के बीचो-बीच रख दी।
मास्टर जी : राहुल तुम बताओ, ये गेंद किस रंग की है।
राहुल : जी ये सफ़ेद रंग की है।
मास्टर जी : अमित तुम बताओ ये गेंद किस रंग की है ?
अमित : जी ये बिलकुल काली है।
दोनों ही अपने जवाब को लेकर पूरी तरह कॉंफिडेंट थे कि उनका जवाब सही है,और एक बार फिर वे गेंद के रंग को लेकर एक दूसरे से बहस करने लगे.
मास्टर जी ने उन्हें शांत कराते हुए कहा,“ठहरो,अब तुम दोनों अपने अपने स्थान बदल लो और फिर बताओ की गेंद किस रंग की है ?”दोनों ने ऐसा ही किया,पर इस बार उनके जवाब भी बदल चुके थे। राहुल ने गेंद का रंग काला तोअमित ने सफ़ेद बताया।

अब मास्टर जी गंभीर होते हुए बोले,बच्चों ये गेंद दो रंगो से बनी है और जिस तरह यह एक जगह से देखने पे काली और दूसरी जगह से देखने पर सफ़ेद दिखती है उसी प्रकार हमारे जीवन में भी हर एक चीज को अलग अलग दृष्टिकोण से देखा जा सकता है। ये ज़रूरी नहीं है कि जिस तरह से आप किसी चीज को देखते हैं उसी तरह दूसरा भी उसे देखे.इसलिए अगर कभी हमारे बीच विचारों को लेकर मतभेद हो तो ये ना सोचें की सामने वाला बिलकुल गलत है बल्कि चीजों को उसके नज़रिये से देखने और उसे अपना नजरिया समझाने का प्रयास करें। तभी आप एक अर्थपूर्ण संवाद कर सकते हैं।

बुरे वक्त में क्या करें?

                   एक बार की बात है एक राजा था। वो विनम्र स्वभाव का था। लोगों की सेवा करना वो अपना धर्म समझता था। एक बार उस राजा के पास एक ...