Sunday, November 4, 2018

बुरे वक्त में क्या करें?

                   एक बार की बात है एक राजा था। वो विनम्र स्वभाव का था। लोगों की सेवा करना वो अपना धर्म समझता था। एक बार उस राजा के पास एक साधु आए। उस राजा ने उस साधु की सेवा पूरे मनोभाव से की।




                       राजा की सेवा से प्रसन्न होकर साधु ने उसे एक  ताबीज दिया और कहा कि इसे अपने गले में धारण करना और जिंदगी में कभी ऐसी परिस्थिति आये कि जब आप किसी ऐसी समस्या में फंस जाओ जहां आपको लगे कि अब इस परिस्तिथि से निकलने का कोई रास्ता नहीं है। जब उम्मीद की कोई किरण दिखाई न दे। और निराशा आपको चारों तरफ से घेर ले। तब आप इस ताबीज़ को खोलना। आपको ज़रूर समाधान मिल जायेगा। राजा ने उस ताबीज़ को अपने गले में धारण किया और साधु को धन्यवाद दिया।





                     दो-तीन महीने बाद, एक बार राजा अपने सैनिकों के साथ शिकार करने गया। जंगल काफी घना था। उसे एक शेर दिखाई दिया। राजा ने मन बना लिया था कि इस शेर का शिकार करना ही है। राजा उसके शिकार में इतना ध्यानमग्न हो गया कि शेर का पीछा करते-करते अपने सैनिकों से अलग हो गया और दुश्मन राजा की सीमा में  पहुँच गया। दुश्मन के राज्य में वो बहुत दूर आ गया था। शाम का समय था अंधेरा भी हो रहा था। तभी कुछ दुश्मन सैनिकों के घोड़ों की आवाज राजा को सुनाई दी। इससे पहले वो छुप पाता उसे दुश्मन सैनिकों ने देख लिया।





                     वह बचने के लिए भागने लगा। दुश्मन सैनिकों ने उसका पीछा किया। बहुत दूर तक भागने पर भी राजा उन सैनिकों से पीछा नहीं छुड़ा पाया। भूख-प्यास से बेहाल राजा को तभी घने पेड़ों के बीच में एक गुफा दिखी।





                    उसने तुरंत स्वयं और अपने घोड़े को उस गुफा की आड़ में छुपा लिया। और चुप-चाप छुप के बैठ गया। दुश्मन के घोड़ों के पैरों की आवाज धीरे-धीरे पास आने लगी। दुश्मन से घिरे हुए अकेले राजा को अपना अंत नजर आने लगा। उसे लगा कि बस अब सब कुछ खत्म हो गया है। अब कुछ नहीं किया जा सकता। कुछ ही क्षणों में दुश्मन उसे पकड़ कर मौत के घाट उतार देंगे। वो जिंदगी से निराश हो ही गया था कि उसका हाथ अपने ताबीज पर गया और उसे साधू की बात याद आयी। उसने तुरंत ताबीज को खोला और उसके अंदर उसे एक छोटा सा कागज का टुकड़ा मिला। उस कागज के टुकड़े को उसने बाहर निकाला। उस पर्ची पर लिखा था "यह भी कट जाएगा।"




                    ये संदेश पढ़कर उसे उम्मीद की किरण दिखाई दी। उसे अपने जीवन के सारे वो पल याद आ गए जब वो समस्याओं से घिरा था। उसको विश्वास हो गया कि ये कठिन समय भी कट जाएगा और उसे ये भी एहसास हुआ कि जब वो अपने जीवन में इतनी समस्याओं से गुजर चुका है। तो ये दुःखदायी समय भी कट जायगा। तो मैं क्यों चिंतित होऊँ?



                      और हुआ भी यही, दुश्मन के घोड़ों के पैरों की आवाज पास आते- आते दूर जाने लगी। कुछ समय बाद वहां शांति छा गई। राजा ने रात होने का इंतज़ार किया। और जब अंधेरा हो गया तो वो बाहर निकला और किसी तरह अपने राज्य में वापस लौट गया।





प्रिय पाठक,
जिस प्रकार इस राजा की जिंदगी में समस्या आयी। उसी प्रकार हम सभी लोगों की जिंदगी में हमेशा समस्याओं का ढ़ेर लगा रहता है। और उन समस्याओं का समाधान पाने लिए हम अक्सर चिंतित रहते है। और चिंता के कारण ही हम तनाव के दबाव में इस तरह आ जाते है कि हमें कुछ समझ नहीं आता। और डर हम पर हावी होने लगता है। कोई भी रास्ता नज़र नहीं आता। और लगने लगता है कि सब खत्म हो गया है।  ऐसी ही परिस्तिथियों से एप्पल (apple) कंपनी के संस्थापक 'स्टीव जॉब्स' भी कई बार गुजरे। और एक सेमिनार में उन्होंने एक बात कही जो कि हमें हमेशा याद रखनी चाहिए। उन्होंने कहा था कि हम सभी के जीवन में समस्याएं आती है। पर समस्याएं हमारी जिंदगी में हमेशा के लिए रहने नहीं आती, समस्याएं आती है चले जाने के लिए। यही बात मैं आपको इस कहानी के माध्यम से भी बताना चाहता हूँ। तो जब भी आपकी जिंदगी में कोई समस्या आती है तो ये वाक्य जरूर याद रखिये - "ये भी कट जाएगा।" इससे आपको उस परिस्तिथि से उभरने का हौसला मिलेगा। और देखते ही देखते समस्या चली जायेगी।

Tuesday, October 30, 2018

Opportunity (मौका)

                    एक बार की बात है| एक व्यक्ति बहुत ही महत्वकांशी था| वो अपनी जिंदगी में बहुत कुछ चाहता था| और वो अपनी इच्छओं को पूरा करने के लिए बहुत लंबे समय से प्रयास भी कर रहा था| परंतु वो सफल नहीं हो पा रहा था| पर फिर भी उसके अंदर की महत्वकांशा अभी भी बरकरार थी| अब वो समझ चुका था कि उसकी सारी इच्छओं की पूर्ति केवल पैसे से ही पूर्ण हो सकती है| जिसका उपाय ढूंढने के  लिए वह एक महात्मा के पास पहुंचा| 


                      उसने महात्मा से कहा,"मैं अपनी जिंदगी में बहुत कुछ चाहता हूँ| और अपने परिवार वालों को भी खुशी देना चाहता हूँ| उनके सारे सपने पूरे करना चाहता हूँ। मैं काफी लंबे समय से प्रयास कर रहा हूँ और अब मैं समझ गया हूँ कि इन सब की पूर्ति केवल पैसों से ही हो सकती है| गुरु जी आप तो ज्ञानी है कृपा करके इसका समाधान बताईये|"



महात्मा मुस्कुराते हुए बोले,"तुम्हारी समस्या का समाधान बहुत ही आसान है। पर तुम्हें थोड़ा समय देना होगा।"



                      वो व्यक्ति ये सुनकर खुश हो जाता है। उम्मीद की किरण उसके मन को उजागर कर देती है। वो महात्मा से कहता है,"मुश्किल हो या आसान हो मैं उसके लिए कुछ भी करने को तैयार हूँ। अभी तक मैंने अपनी इच्छओं को पूरा करने के लिए बहुत प्रयास किया है। मैं और प्रयास करने को तैयार हूँ। आप मुझे बताईये क्या करना है।"



महात्मा कहते है,"एक कंकड़ है जो तुम्हें समुद्र तट के किनारे मिलेगा। उस कंकड़ से तुम जिसे भी छुओगे वो सोने का हो जायेगा। और तुम्हारी धन संबंधी समस्या का समाधान हो जायेगा।"



वो व्यक्ति उत्सुक होते हुए पूछता है,"वहां पर तो बहुत सारे कंकड़ होंगे।इतने सारे कंकडों में से मैं उसे पहचानूंगा कैसे?"



महात्मा कहते है,"तुम उसे उसके तापमान से पहचानोगे। बाकी सारे कंकड़ ठंडे किस्म के होंगे। और वो जो तुम ढूंढ रहे हो वो थोड़ा गरम किस्म का होगा।"



                     वो व्यक्ति खुश हो गया| उसके मन में विचार था कि ये तो आसान है। जैसे मैं रोज अपना काम करता हूँ वैसे ही मुझे थोड़ा सा समय निकालकर वहाँ जाना है। थोड़ा-थोड़ा रोज मैं अपना समय दूंगा तो एक दिन जरूर मुझे वो मिल जायेगा।




                     वो उस दिन खुश होकर घर गया। और चैन से सोया। उसे मालूम था कि उसकी सारी इच्छाएं पूरी होने वाली है। अगले दिन वो सुबह उठा। और समुद्र तट पर चले गया। काम बहुत सरल था। बस एक-एक कंकड़ को हाथ में पकड़ना था। और गर्म कंकड़ को पहचानना था।



                    वो धीरे-धीरे हर एक कंकड़ को बारीकी से परखता गया। वो कंकड़ हाथ में पकड़ता और अगर कंकड़ ठंडा महसूस होता तो वो उसे समुद्र में फेंक देता था। ताकि वो बांकी कंकडों से अलग रहे। एक दिन बीत गया। फिर दूसरा दिन भी बीत गया। और वो ऐसे ही बारीकी से कंकड़ को परखता चला गया।



                        कुछ दिन और बीत गए। वो वैसे ही बारीकी से परखता रहा। फिर एक सप्ताह बीता, फिर एक महीना और ऐसे करते-करते तीन महीने बीत गए। अब तक उसके हाथ वो अनमोल कंकड़ नहीं लगा। अब उसकी उस कंकड़ को बारीकी से परखने की आदत छूट चुकी थी। अब वो इस कार्य को उतनी बारीकी से नहीं कर रहा था जितना वो पहले दिन कर रहा था। अब वो कंकड़ हाथ से पकड़ता और सीधे समुद्र में फेंक देता था। यानी अब उसने उस कार्य को हल्के में लेना शुरू कर दिया। और यही उसकी आदत बन चुकी थी।



                       एक दिन वो ऐसे ही वो कंकड़ ढूंढ रहा था। और हाथ में कंकड़ लेकर उसे समुद्र में फेंक रहा था। तो उसके हाथ में वो अनमोल कंकड़ आया। परंतु जब तक उसे उसकी गर्मी का एहसास होता उसने उस कंकड़ को भी जल्दी से समुन्द्र में फेंक दिया। उसकी कार्य को हल्के में लेने की आदत से उसने वो अनमोल पत्थर हाथ में होते हुए भी गवां दिया। अब वो पछताने लगा क्योंकि अब उसे दोबारा प्राप्त करना अब संभव नहीं था।




प्रिय पाठक,

 हमारी जिंदगी में भी वो कंकड़ हमेशा विद्यमान है। वो कंकड़ एक "मौका" है। जो आपकी जिंदगी बदल सकता है। हम सभी लोग अपनी जिंदगी बदलना चाहते है। और उसके लिए योजना (plan) भी बनाते है। पहले दो-चार दिन बहुत ही ध्यान से उसमें लगे रहते है। और उस वक़्त हममें उत्साह भी बहुत होता है। लेकिन धीरे-धीरे जब उस प्रयास के अनुरूप हमें परिणाम नहीं मिलता तब हमारा उत्साह और दृष्टिकोण बदलने लगता है। और हम फिर उसके प्रति उतना ध्यान नहीं देते। यानी हर एक चीज को हल्के में लेने लगते है। और यही धीरे-धीरे हमारी आदत बन जाती है। और फिर एक दिन जब एक बेहतरीन "मौका" हमसे टकराता है। तो हर चीज को हल्के लेने की आदत के कारण हम उस मौके को भी हल्के में ले लेते है। और अपनी जिंदगी को बदलने का मौका गवां देते है। इसीलिए अपनी आदतों पर ध्यान दीजिए। अपनी आदतों को अपना साथी बनाइये। ताकि जब भी आपकी जिंदगी में मौका आये तो अपनी आदतों के कारण आपको वो गवाना न पड़े।





आपको आपके बेहतर भविष्य के लिए शुभकामनाएं।
धन्यवाद।

Saturday, October 6, 2018

No Pain No Gain (किस तरह जिंदगी आपको बदलने का मौका देती है?)

बिना मुश्किलों से गुजरे कुछ हासिल नहीं होता 

                     एक बार की बात है। एक गांव में एक बहुत प्रसिद्ध मूर्तिकार रहता था। वो स्वभाव से बहुत ही उदार था। उसकी प्रसिद्धि इतनी थी कि लोगों का मानना था कि वो जिस पत्थर को छू लेता है वो एक बेहतरीन मूर्ति में तब्दील हो जाता है।



                     मूर्तिकार रोज अपने कार्य के लिए शहर जाया करता था। एक दिन की बात है वो रोज की ही तरह शहर जा रहा था। उस दिन धूप बहुत ज्यादा थी। उस गर्मी से परेशान होकर उसने थोड़ा आराम करने का निश्चय किया।



                     थोड़ी दूर पर ही एक बड़ा पेड़ देखकर वो उसकी छाया में आराम करने के लिए बैठ गया। कुछ समय आराम करने के बाद उसे लगा कि उसे अपना समय व्यर्थ नहीं जाने देना चाहिए। ये सोचकर उसने अपने थैले से अपने औज़ार निकाले और पास ही में पड़े एक पत्थर को उठाया। और एक सुंदर कृति बनाने के उद्देश्य से उस पर चोट मारने लगा। जैसे ही पत्थर को हथोड़े से पहली चोट पड़ी वो दर्द भरी आवाज़ में करहाने लगा। और दूसरी चोट पड़ते ही वो चिल्लाया , " नहीं मुझे मत मारो। मैं जैसा हूँ मुझे वैसा ही छोड़ दो। मैं नहीं बदलना चाहता। मैं जैसा हूँ वैसा ही अच्छा हूँ।"


                      उस पत्थर की उस पीड़ा को देखकर उसने उसे उसकी जगह पर वापस रख दिया। इस पर वो पत्थर बहुत खुश हुआ।



                      मूर्तिकार ने उसी के बगल में पड़ा दूसरा पत्थर उठाया। और एक सुंदर मूर्ति बनाने की उद्देश्य से उस पर चोट मारना शुरू किया। इस पत्थर ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। वो चुप-चाप रहा। कुछ समय बाद उस मूर्तिकार ने अपने कौशल का प्रयोग कर के भगवान की एक सुंदर मूर्ति का निर्माण कर दिया। समय भी काफी बीत चुका था और अब धूप भी हल्की हो गयी थी। उस मूर्तिकार ने बनाई गई उस मूर्ति को उस पेड़ के नीचे रखा और अपने काम पर चल दिया।




                   

                      धीरे-धीरे समय बीता। एक दो महीने बाद वो मूर्तिकार उसी रास्ते से गुजर रहा था। उसे एक पेड़ के चारों ओर बहुत भीड़ दिखी। अब ये पता लगाने कि वहां क्या चल रहा है वो उस पेड़ की ओर बढ़ा। जैसे ही वो पेड़ की नजदीक पहुँचा उसे याद आया कि ये तो वहीं पेड़ है जिसके नीचे एक दिन उसने आराम किया था। भीड़ का कारण जानने के लिए वो भीड़ के समीप गया। वहां देखा तो वहाँ उस मूर्ति की पूजा हो रही थी। वो मूर्ति वही थी जो उस मूर्तिकार ने बनाई थी। उसके गुणगान किये जा रहे थे। उस पर फूल चढ़ाये जा रहे थे। फिर उसकी नज़र उसके पास ही पड़े अन्य पत्थर पर पड़ी। वो वह पत्थर था जिसे उस मूर्तिकार ने उस दिन मूर्ति बनाने की उद्देश्य से सबसे पहले उठाया था लेकिन उसने थोड़ी सी चोट पड़ने पर करहाना शुरू कर दिया था। और खुद को बदलने से इनकार कर दिया था। उस पत्थर पर लोग नारियल फोड़ कर उस सुंदर मूर्ति को चढ़ा रहे थे।




               Ladies and gentlemen, इस मूर्तिकार की तरह ही ईश्वर भी एक मूर्तिकार की ही तरह सभी को सुंदर और योग्य बनाने के लिए अलग-अलग तरह से चोट मारता है। पर हम में से कुछ लोग उसकी चोट से डरकर, उस से होने वाले दर्द से डर कर खुद को बदलने से इनकार कर देते है। और उसी स्थिति में रहना पसंद करते है जिसमें  वो पहले से होते है। और इसी तरह गुमनामी में हम पूरी जिंदगी गुजार देते है। तो दोस्तों अगर आप चाहते है कि आप सबसे अलग कुछ कर दिखाए तो ईश्वर द्वारा दी जा रही चोट को स्वीकार करिये और खुद को बदलते रहिये।





आपको आपके सुंदर भविष्य के लिए शुभकामनाएं।
धन्यवाद।




Thursday, October 4, 2018

सही रास्ता (The Right Path)


सही रास्ता 


                   एक बार एक छोटा सा गांव था। गांव चारों तरफ से घने जंगल से घिरा था। गांव में कालू नामक एक गधा रहता था। उसका गांव में किसी से ज्यादा मेल-जोल नहीं था। ना उससे कोई मिलने आता था और न ही वह किसी और से मिलने जाता था। क्योंकि वो ज्यादातर समय अकेले बिताता था इसीलिए उसके मन में नए-नए विचार आते रहते थे।

                 एक बार गधे ने सोचा क्यों ना इस घने जंगल के उस पार जाकर देखा जाए कि आखिर उस तरफ है क्या?


                 अगले दिन वो सुबह-सुबह जंगल की ओर चल दिया। जंगल बहुत घना था और गधा मूर्ख। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। वो जहाँ मन करता वहां की ओर चलता जाता था। जैसे-तैसे कुछ दिनों बाद उसने वो जंगल पार कर लिया और दूसरी ओर  स्थित एक और गाँव पहुँच गया।



                  वहाँ गाँव में खूब हल्ला होने लग गया कि कालू गधा गाँव छोड़ कर चला गया है।सब बात करने लगे कि वो कितना भाग्यशाली है, और अब कितनी आराम की ज़िन्दगी जी रहा होगा। लोगों की बात सुनकर कुत्तों  के एक झुण्ड ने भी जंगल पार करने का निश्चय किया।



                  अगली सुबह वह गधे की गंध का पीछा करते हुए उसी रास्ते से जंगल के उस पार चले गए।


                 और धीरे-धीरे गाँव के अन्य पशुओं में भी जंगल पार करने की होड़ सी लग गयी और सभी उस गधे द्वारा खोजे गए रास्ते पर चलते हुए जंगल पार करने लगे।


                  उस रास्ते पर बार-बार इतने जानवरो के चलने के कारण एक रास्ता सा बन गया। समय बीतता गया और कुछ सालों बाद गांव के लोग भी उसी रास्ते पर चलकर जंगल पार करने लगे। कुछ सालों बाद गाँव की आबादी भी काफी बढ़ गयी। तब सरकार ने जंगल पार करने के लिए एक रोड बनाने का फैसला किया।


                 सरकार ने इस कार्य के लिए  इंजीनियरों का एक दल नियुक्त किया।वो दल गांव आ कर इलाके की स्टडी करने लगा।

                गांव वालों ने उन्हें कहा कि जंगल को पार करने के लिए एक रास्ता पहले से ही बना हुआ है। उसी पर अगर रोड बना दी जाए तो अच्छा रहेगा।

                   उनकी बात सुनकर चीफ इंजीनियर थोडा मुस्कुराया और बोला, “क्या मैं जान सकता हूँ ये रास्ता किसने बनाया ?”


                    गाँव के एक बुजुर्ग बोले, “जहाँ तक मुझे पता है ये रास्ता किसी गधे ने खोजा था!”, और उसने पूरी कहानी सुनाई ।


                   उनकी बात सुनने के बाद चीफ इंजीनियर बोले,  “मुझे यकीन नहीं होता कि आप सब इंसान होते हुए भी इतने सालों से एक गधे के बनाये रास्ते पर चल रहे थे। पता है ये रास्ता कितना कठिन और लम्बा है जबकि हमने जो रास्ता खोजा है वो इसका एक चौथाई भी नहीं है और उसे पार करना भी कहीं आसान है। ”



                  इतने समय बाद आज गाँव वालों को अपनी गलती का एहसास हो रहा था। वे सोच रहे थे कि काश उन्होंने एक नया रास्ता खोजने का प्रयास किया होता तो वो इतने सालों से इतने लंबे और कठिन रास्ते पर नहीं चल रहे होते।


                 हमारी जिंदगी के बहुत से कार्य हम भी इन गांव वालों की तरह ही करते है। जो कुछ पहले लंबे समय से हो रहा होता है। उसी पर आंख बंद कर के विश्वास कर के उसी का अनुसरण करते जाते है। उस पर इतना विश्वास होता है हमें, कि वो सही है या गलत इसका भी हम अंदाज़ नहीं लगाते और उसी में इतना लीन रहते है कि कुछ नया खोजने और नया करने की अपनी असीम शक्ति का प्रयोग नहीं करते और अपना जीवन व्यर्थ गांव देते है।
हमें अपनी गलती का एहसास वास्तव में तब होता है जब कोई व्यक्ति हमसे उसका कारण पूछता है। तब हम उस बात की गहराई में जाते है। और उसकी सच्चाई हमें तब पता लगती है। ऐसी परिस्थितियों से निपटने के लिए हमे अपना विवेक जागृत करना होगा। हमें अपने अंदर के दृष्टिकोण को जगाना होगा। तभी हम सही-गलत का फैसला कर पाएंगे। और साथ ही हमें जीवन में स्वयं का अच्छा मार्गदर्शन भी प्राप्त हो पाएगा।



आपको आपके बेहतर भविष्य के लिए शुभकामनाएं।
धन्यवाद।

Monday, October 1, 2018

दुनिया का एक ऐसा व्यक्ति जिसके पास कोई समस्या नहीं है।





दुनिया का एक ऐसा व्यक्ति जिसके पास कोई समस्या नहीं है।



                  एक बार की बात है। दुर्गम पहाड़ियों में एक महान पंडित रहते थे। वे इतने महान थे कि लोग अपनी समस्याओं का समाधान प्राप्त करने उनके पास आया करते थे। उनकी प्रसद्धि इतनी थी कि दुर्गम पहाड़ियों पर रहने के बावजूद भी लोग उन्हें ढूंढते हुए उन कठिन रास्तों, दुर्गम पहाड़ियों और गहन जंगल से भरे हुए रास्तो को पार करके भी उनके घर पर  पहुँच जाते थे। लोगो का मानना था कि वे उनकी कठिन से कठिन समस्या का समाधान दे सकते है।

                  उनके पास एक दिन में इतने लोग आते थे कि उन्हें अपने लिए समय नहीं मिल पाता था। अब वो लोगों के बीच रहकर थक चुके थे। और अब वे भगवान की भक्ति में समय व्यतीत करते हुए सादा जीवन व्यतीत करना चाहते थे। इसीलिए वे अब हिमालय जाकर रहने लगे।

                  उन्हें लगा कि लोग इतनी मुश्किल जगह तो नहीं आएंगे। पर उनकी प्रसिद्धि के कारण इस बार भी कुछ लोग ढूंढते हुए उसकी कुटिया तक आ पहुंचे। पंडित जी ने उन्हें दो-तीन दिन इंतज़ार करने के लिए कहा ।

                 तीन दिन बीत गए , अब और भी कई लोग वहां पहुँच गए। जब लोगों के लिए जगह कम पड़ने लगी तब पंडित जी बोले , "आज मैं आप सभी के प्रश्नो का उत्तर दूंगा। पर आपको वचन देना होगा कि यहाँ से जाने के बाद आप किसी और को इस स्थान के बारे में नहीं बताएँगे । ताकि आज के बाद मैं एकांत में रह कर अपनी साधना कर सकूँ। चलिए अपनी-अपनी समस्याएं बताइये।"



                   यह सुनते ही किसी ने अपनी परेशानी बतानी शुरू की।लेकिन वह अभी कुछ शब्द ही बोल पाया था कि बीच में किसी और ने अपनी बात कहनी शुरू कर दी। सभी जानते थे कि आज के बाद उन्हें कभी पंडित जी से बात करने का मौका नहीं मिलेगा।इसलिए वे सब जल्दी से जल्दी अपनी बात रखना चाहते थे ।कुछ ही देर में वहां का दृश्य मछली-बाज़ार जैसा हो गया और अंततः पंडित जी को चीख कर बोलना पड़ा , "कृपया शांत हो जाइये। अपनी-अपनी समस्या एक पर्चे पर लिखकर मुझे दीजिये।“


                 सभी ने अपनी-अपनी समस्याएं लिखकर आगे बढ़ा दी। पंडित जी ने सारे पर्चे लिए और उन्हें एक टोकरी में डाल कर मिला दिया और बोले , ” इस टोकरी को एक-दूसरे को पास कीजिये।  हर व्यक्ति एक पर्ची उठाएगा और उसे पढ़ेगा। उसके बाद उसे निर्णय लेना होगा कि क्या वो अपनी समस्या को इस समस्या से बदलना चाहता है ?”



               हर व्यक्ति एक पर्चा उठाता। उसे पढ़ता और सहम सा जाता। एक-एक कर के सभी ने पर्चियां देख ली। पर कोई भी अपनी समस्या के बदले किसी और की समस्या लेने को तैयार नहीं हुआ। सबका यही सोचना था कि उनकी अपनी समस्या चाहे कितनी ही बड़ी क्यों न हो बाकी लोगों की समस्या जितनी गंभीर नहीं है। दो घंटे बाद सभी अपनी-अपनी पर्ची हाथ में लिए लौटने लगे। वे खुश थे कि उनकी समस्या उतनी बड़ी भी नहीं है जितना कि वे सोचते थे।


                 Friends, हम सभी अनेक समस्याओं से ग्रस्त है। लेकिन हमें अपनी समस्या इतनी बड़ी लगती है कि हमें लगता है कि सामने वाला सुखी है। लेकिन वो भी अपनी समस्या से उतना ही परेशान होता है जितना कि हम। वो हिंदी में एक कहावत है - "दुसरों के खेत की फसल हमेशा हरी भरी लगती है।" इंसान भी दैनिक जीवन की इसी कहावत की तरह सोचता है। उसे लगता है कि वो ही दुखी है लेकिन वास्तव में उसकी समस्या बहुत ही छोटी होती है। अगर हमारे सामने ये सृष्टि कोई समस्या लाती है तो वो उससे निपटने की शक्ति भी हमें प्रदान करती है। इसीलिए हमें अपनी समस्या को एक तरह की चुनौती मानकर उससे निपटना चाहिए।


आपके उज्ज्वल भविष्य के लिए मेरी ओर से शुभकामनाएं।
धन्यवाद।

Friday, September 28, 2018

अपनी समस्याओं से कैसे निपटें?


अपनी समस्याओं से कैसे निपटें?


               
                एक बार की बात है। एक व्यक्ति अपने गधे को लेकर शहर से अपने घर लौट रहा था। रात हो चली थी इसलिए रास्ता ढंग से दिखाई नही दे रहा था। फिर भी वो ध्यान से अपने गधे को ले जा रहा था। पर अचानक गधे का पैर फिसला और वो एक गड्ढे में गिर गया। उस व्यक्ति ने बहुत कोशिश की परंतु वो उसे बाहर निकलने में असफल रहा।




                 रात बहुत हो चुकी थी। खुद को सुरक्षित रखने के लिए उसने वहाँ से जाना उचित समझा। अंधेरा भी हो रहा था तो उस व्यक्ति को लगा कि उसके गधे को उस गड्ढे से निकालना अब असंभव है। उसने उसे जिन्दा ही मिटटी से ढक देने का सोचा और वह ऊपर से मिटटी डालने लगा । बहुत देर तक मिटटी डालने के बाद वो पास ही के एक गांव में चला गया।



                  ढ़ेर सारी मिट्टी ने उस गधे को ऊपर आने में मदद की। जब भी वो व्यक्ति उसके ऊपर मिट्टी डालता तो वो गधा अपना शरीर हिलाकर उस मिट्टी को गिरा देता था। अपने ऊपर गिरी हुए मिटटी की मदद से धीरे-धीरे उस पर अपना पैर रख-रख कर उस गड्ढे के ऊपर जिन्दा चढ़ आया । अगले दिन जब वह व्यक्ति सुबह उठा तो उसने देखा उसका गधा उसके घर के बाहर ही खड़ा था । यह देखकर वो व्यक्ति आश्चर्यचकित रह गया।



हमारी जिंदगी में भी कभी-कभी कुछ समस्याएं हमारे ऊपर इतनी हावी हो जाती है कि हम बहुत ज्यादा चिंतित और उदास हो जाते है। हमारी उम्मीद के सारे रास्ते बंद प्रतीत होते है। और हम हर मान लेते है। जब हम ऐसी परिस्तिथियों का सामना करते है तो हमें ये बात ध्यान में रखनी चाहिए कि जब ये संसार या भगवान हमारे सामने कोई समस्या पैदा करता है टैब उसी वक़्त वो उससे निपटने की ताकत भी हममें भर देता है। हैम उस समस्या को हल कर सकते है। बस यही विश्वास आपके मन में होना चाहिए। और आप इसी विश्वास के साथ सभी समस्याओं का हल प्राप्त कर लेंगे। और एक सुखी और संतुष्टि का जीवन व्यतीत करेंगे।


धन्यवाद।
और आपको आपके सुंदर और संपन्न भविष्य के लिए शुभकामनाएं।

Tuesday, September 25, 2018

अहंकार (EGO)


अहंकार 


             एक 45 साल का व्यक्ति अपनी बैल गाड़ी पर अनाज की एक बोरी चढ़ाने की कोशिश कर रहा था। उसे बोरी चढ़ाने में थोड़ी परेशानी हो रही थी क्योंकि वो भारी थी। तभी वहाँ से जा रहा एक नौजवान  उनकी ओर आया और बोला, ” आप जिस तरीके से बोरी चढ़ा रहे हैं वो गलत है। मेरे पास एक आसान तरीका है।”

            वो इस नौजवान की ये बात सुनकर गुस्सा हो गए और बोले , ” भाई तुम अपना काम करो।मैं इससे भी भारी बोरी चढ़ा चुका हूँ ।मुझे सारे तरीके पता है।"

           "यानि पहले भी आपने गलत तरीका इस्तेमाल किया होगा। “ उस नौजवान ने कहा।

           यह सुन उसने  बोरी छोड़ी। अपने हाथ झाड़े और गुस्से से बोले,  "तुम नौजवानो की यही समस्या है।थोड़ा पढ़-लिख लेते हो तो खुद को बहुत होशियार समझने लगते हो। ये नहीं जानते की हम सालों से यही काम कर रहे हैं। चले आते हो अपनी बुद्धि लगाने।"

             नौजवान उनकी बात पर मुस्कुराया  और बोला , "आपकी मर्जी, मैं तो आपके भले की बात कर रहा था।” और ये कहकर वो नौजवान जाने लगा।

             लेकिन तभी उस व्यक्ति को लगा कि क्यों न उसकी बात सुन ही ली जाए, अगर ठीक हुई तो सही नहीं तो जैसे काम होता आया है वैसे ही होता रहेगा।
             "सुनो लड़के ! बताओ तुम कौन सा तरीका बता रहे थे।”  वो बोले।

             वो नौजवान फ़ौरन उनके पास आया और इशारे से उन्हें बोरी के दूसरी तरफ जाने को कहा।

            “चलिए , अब आप उधर से पकड़िए और मैं इधर से पकड़ता हूँ। दोनों मिलकर उठाते हैं।” नौजवान बोला और फ़ौरन बोरी बैलगाड़ी पर जा पहुंची।



वे मुस्कुराये, आज एक अनजान नौजवान ने उन्हें एक बड़ी सीख दे दी थी।

इससे अपनी जिंदगी में दो सीख अपनायी जा सकती है। पहली ये कि ये जरूरी नहीं कि जो तरीके बहुत पहले से चले आ रहे है वो हमेशा ही सही हो और दूसरी ये कि इस दुनिया में अगर कोई भी काम सहयोग और सहानुभूति की भावना से किया जाए तो उस कार्य को आसानी से और बिना अधिक समय लिए किया जा जा सकता है।  वो हम और आप ही है जो इस दुनिया को बेहतर बना सकते है।


आपको आपके बेहतर भविष्य के लिए शुभकामनाएं।
धन्यवाद।

Sunday, September 23, 2018

साहसी बनो! तभी जिंदगी में कुछ मुकाम हासिल हो पाएगा


साहसी बनो! तभी जिंदगी में कुछ मुकाम हासिल हो पाएगा


              गर्मियों की छुट्टियां थी। हर साल करन कहीं ना कहीं घूमने जाया करता था। इस बार करन और उसके दोस्तों ने पहाड़ी इलाके में पर्वतारोहण ( mountaineering) करने का निश्चय किया।




              जिसके लिए गाइड उन्हें एक फेमस माउंटेनियरिंग स्पॉट पर ले गया. करन और उसके दोस्तों ने सोचा नहीं था कि यहाँ इतनी भीड़ होगी. हर तरफ लोग ही लोग नज़र आ रहे थे।

एक दोस्त बोला, ” यार यहाँ तो शहर जैसी भीड़ है…यहाँ चढ़ाई करने में क्या मजा?”

“क्या कर सकते हैं… अब आ ही गए हैं तो अफ़सोस करने से क्या फायदा…चलो इसी का मजा उठाते हैं…”, करन ने जवाब दिया.
सभी दोस्त पर्वतारोहण करने लगे और कुछ ही समय में पहाड़ी की चोटी पर पहुँच गए।

                वहां पर पहले से ही लोगों का तांता लगा हुआ था।दोस्तों ने सोचा चलो अब इसी भीड़ में दो-चार घंटे कैम्पिंग करते हैं।और फिर वापस चलते हैं।तभी करन ने सामने की एक चोटी की तरफ इशारा करते हुए कहा, “रुको-रुको… ज़रा उस चोटी की तरफ भी तो देखो।वहां तो बस मुट्ठी भर लोग ही दिख रहे हैं। कितना मजा आ रहा होगा… क्यों न हम वहां चलें।”

“वहां!”, एक दोस्त बोला, “अरे वहां जाना सबके बस की बात नहीं है।उस पहाड़ी के बारे में मैंने सुना है, वहां का रास्ता बड़ा मुश्किल है और कुछ लकी लोग ही वहां तक पहुँच पाते हैं.”

बगल में खड़े कुछ लोगों ने भी करन का मजाक उड़ाते हुए कहा,” भाई अगर वहां जाना इतना ही आसान होता तो हम सब यहाँ झक नहीं मार रहे होते!”

                 लेकिन करन ने किसी की बात नहीं सुनी और अकेला ही चोटी की तरफ बढ़ चला।और तीन घंटे बाद वह उस पहाड़ी के शिखर पर था।वहां पहुँचने पर पहले से मौजूद लोगों ने उसका स्वागत किया और उसे प्रोत्साहित किया।

करन भी वहां पहुँच कर बहुत खुश था।अब वह शांति से प्रकृति की ख़ूबसूरती का आनंद ले सकता था।

जाते-जाते करन ने बाकी लोगों से पूछा  ”एक बात बताइये… यहाँ पहुंचना इतना मुश्किल तो नहीं था।मेरे ख़याल से तो जो उस भीड़-भाड़ वाली चोटी तक पहुँच सकता है।वह अगर थोड़ी सी और मेहनत करे तो इस चोटी को भी छू सकता है।फिर ऐसा क्यों है कि वहां सैकड़ों लोगों की भीड़ है और यहाँ बस मुट्ठी भर लोग?”

वहां मौजूद एक प्रशिक्षक माउंटेनियर बोला, “क्योंकि ज्यादातर लोग बस उसी में खुश हो जाते हैं जो उन्हें आसानी से मिल जाता।वे सोचते ही नहीं कि उनके अन्दर इससे कहीं ज्यादा पाने का सामर्थ्य (Potential) है।और जो थोड़ा पाकर खुश नहीं भी होते वे कुछ अधिक पाने के लिए  रिस्क नहीं उठाना चाहते। वे डरते हैं कि कहीं ज्यादा के चक्कर में जो हाथ में है वो भी ना चला जाए। जबकि हकीकत ये है कि अगली चोटी या अगली मंजिल पाने के लिए बस जरा से और प्रयास की ज़रुरत पड़ती है। पर साहस ना दिखा पाने के कारण अधिकतर लोग पूरी लाइफ बस भीड़ का हिस्सा ही बन कर रह जाते हैं।और साहस दिखाने वाली उन मुट्ठी भर लोगों को लकी बता कर खुद को तसल्ली देते रहते हैं.”

                  इसी प्रकार हम भी अपने आप को इसी भीड़ में छुपाये अपने को सुरक्षित महसूस करते है।और अपनी क्षमताओं का पूरा-पूरा उपयोग ना करते हुए जो मिला है उसी में संतुष्ट हो जाते है।और जब समय गुजर जाता है तो किस्मत तो दोष देकर खुद को झूठी सांत्वना दे कर बाकी बचा जीवन भी गुजार देते है।

तो दोस्तो भीड़ का हिस्सा मत बनिये ...साहस दिखाईये और आगे बढ़िए।

आप सभी को मेरी ओर से बेहतर भविष्य के लिए शुभकामनाएं।
धन्यवाद।।

Saturday, September 22, 2018

मूर्ख गधा (प्रेरणादायक कहानी)


मूर्ख गधा

                   एक बार दो गधे अपनी पीठ पर बोझा उठाये चले जा रहे थे, उनको काफी लंबा सफर तय करना था।एक गधे की पीठ पर नमक की भारी बोरियां लदी हुई थीं तो एक की पीठ पर रूई की बोरियां लदी हुई थीं।जिस रास्ते से वो जा रहे थे उस बीच में एक नदी थी।नदी के ऊपर रेत की बोरियों का कच्चा पुल बना हुआ था।जिस गधे की पीठ पर नमक की बोरियां थीं, उसका पैर बुरी तरह से फिसल गया और वह नदी के अंदर गिर पड़ा।नदी से उठने तक में उसे जो समय लग उसमें बोरियों का नमक पानी में घुल गया और उसका वजन हल्का हो गया।वह यह बात बड़ी प्रसन्नता से दूसरे को बताने लगा।दूसरे गधे ने सोचा कि यह तो बढ़िया युक्ति है, ऐसे में तो मैं भी अपना भार काफी कम कर सकता हूँ और उसने बिना सोचे समझे पानी में छलांग लगा दी, किन्तु रूई के पानी सोख लेने के कारण उसका भार कम होने की जगह बहुत बढ़ गया।जिस कारण वह गधा पानी में डूब गया।

                  एक संत यह सारा किस्सा अपने शिष्यों के साथ देख रहे थे, उन्होंने अपने शिष्यों से कहा- “मनुष्य को सदा अपना विवेक जागृत रखना चाहिए, बिना अपनी बुद्धि लगाए दूसरों की नकल कर वैसा ही करने वाले सदा उपहास के पात्र बनते हैं। ”

                  मित्रों हमारी असल जिंदगी में भी यही बात लागू होती है।हम किसी को एक क्षेत्र में सफल होते देख उसे कॉपी करना शुरू कर देते हैं। हमें लगता है कि यदि कोई व्यक्ति अपने क्षेत्र में सफल हो गया तो हमें भी उस क्षेत्र में सफलता मिल जायेगी लेकिन हम शायद यह ध्यान नहीं देते कि उसके पीठ पर नमक वाली बोरी है।मतलब उसकी रुचि (intrest) अलग है और भूलवश हम रूई की बोरी को लादे छलांग लगा देते हैं।मतलब दूसरा टैलेंट या इंटरेस्ट को लादे उस क्षेत्र में सफल होने का ख्वाब देखते है और अंततः हमें पछताना पड़ता है। इसलिए , दूसरों को देखकर सीखना ठीक है पर उनका अंधा अनुसरण करना उस मूर्ख गधे के समान व्यवहार करना है।



मैं उम्मीद करता हूँ कि इस कहानी से मिली सीख को आप अपने जीवन मे लागू करेंगे। और अपने जीवन को बेहतर बनाएंगें।

Sunday, September 16, 2018

गेहूं के दानें (प्रेरणादायक कहानी)


गेहूं के दाने

एक समय की बात है  एक छोटे से गाँव में अमरसेन नामक व्यक्ति रहता था। अमरसेन बड़ा होशियार था, उसके चार पुत्र थे जिनके विवाह हो चुके थे और सब अपनी जीविका कमा रहे थे। परन्तु समय के साथ-साथ अब अमरसेन वृद्ध हो चला था ! पत्नी के स्वर्गवास के बाद उसने सोचा कि अब तक के संग्रहित धन और बची हुई संपत्ती का उत्तराधिकारी किसे बनाया जाये ? ये निर्णय लेने के लिए उसने चारो बेटों को उनकी पत्नियों के साथ बुलाया और एक-एक करके गेहूं के पाँच दानें दिए और कहा कि मै तीरथ पर जा रहा हूँ और चार साल बाद लौटूंगा और जो भी इन दानों की सही हिफाजत करके मुझे लौटाएगा तिजोरी की चाबियाँ और मेरी सारी संपत्ती उसे ही मिलेगी, इतना कहकर अमरसेन वहां से चला गया।

पहले बहु-बेटे ने सोचा बुड्ढा सठिया गया है।चार साल तक कौन याद रखता है।हम तो बड़े हैं तो धन पर पहला हक़ हमारा ही है।ऐसा सोचकर उन्होंने गेहूं के दानें फेक दिये।

दूसरे ने सोचा कि इन्हें संभालना तो मुश्किल है यदि हम इन्हे खा लें तो शायद उनको अच्छा लगे और लौटने के बाद हमें आशीर्वाद दे दे और कहे कि तुम्हारा मंगल इसी में छुपा था और सारी संपत्ती हमारी हो जाएगी यह सोचकर वे उन पाँच दानों को अन्य चावल में मिलाकर खा गए।

तीसरे ने सोचा हम रोज पूजा पाठ तो करते ही हैं और अपने मंदिर में जैसे भगवान की मूर्तियों को सँभालते हैं, वैसे ही ये गेहूं भी संभाल लेंगे और उनके आने के बाद लौटा देंगे।

चौथे बहु- बेटे ने समझदारी से सोचा और पाँचो दानों को एक-एक कर जमीन में बो दिया और उनमें से दो-तीन गेहूं के दानें सही निकले। और पौधे बड़े और अच्छे हो गये और कुछ गेहूं उग आये।फिर उन्होंने उन्हें भी बो दिया इस तरह हर वर्ष गेहूं की बढ़ोतरी होती गई।पाँच दानें पाँच बोरी, पच्चीस बोरी,और पचासों बोरियों में बदल गए।

चार साल बाद जब अमरसेन वापस आया तो सबकी कहानी सुनी और जब वो चौथे बहु-बेटों के पास गया तो बेटा बोला , ” पिताजी , आपने जो पांच दाने दिए थे अब वे गेंहूँ की पचास बोरियों में बदल चुके हैं, हमने उन्हें संभल कर गोदाम में रख दिया है, उन पर आप ही का हक़ है। ” यह देख अमरसेन ने फ़ौरन तिजोरी की चाबियाँ सबसे छोटे बहु-बेटे को सौंप दी और कहा, तुम ही लोग मेरी संपत्ति के असल हक़दार हो।

इस कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि मिली हुई जिम्मेदारी को अच्छी तरह से निभाना चाहिए और मौजूद संसाधनो, चाहे वो कितने कम ही क्यों न हों, का सही उपयोग करना चाहिए। गेंहूँ के पांच दाने एक प्रतीक हैं , जो समझाते हैं कि कैसे छोटी से छोटी शुरूआत करके उसे एक बड़ा रूप दिया जा सकता है।

Tuesday, September 11, 2018

सब सही है


सब सही है 
मास्टर जी क्लास में पढ़ा रहे थे,तभी पीछे से दो बच्चों के आपस में झगड़ा करने की आवाज़ आने लगी।
“क्या हुआ तुम लोग इस तरह झगड़ क्यों रहे हो ? ”, मास्टर जी ने पूछा।
राहुल : सर,अमित अपनी बात को लेकर अड़ा है और मेरी सुनने को तैयार ही नहीं है।
अमित : नहीं सर,राहुल जो कह रहा है वो बिलकुल गलत है इसलिए उसकी बात सुनने से कोई फायदा नही। और ऐसा कह कर वे फिर तू-तू मैं-मैं करने लगे।
मास्टर जी ने उन्हें बीच में रोकते हुए कहा,”एक मिनट तुम दोनों यहाँ मेरे पास आजाओ। राहुल तुम डेस्क की बाईं और अमित तुम दाईं तरफ खड़े हो जाओ।“ इसके बाद मास्टरजी ने बैग से एक बड़ी सी गेंद निकाली और डेस्क के बीचो-बीच रख दी।
मास्टर जी : राहुल तुम बताओ, ये गेंद किस रंग की है।
राहुल : जी ये सफ़ेद रंग की है।
मास्टर जी : अमित तुम बताओ ये गेंद किस रंग की है ?
अमित : जी ये बिलकुल काली है।
दोनों ही अपने जवाब को लेकर पूरी तरह कॉंफिडेंट थे कि उनका जवाब सही है,और एक बार फिर वे गेंद के रंग को लेकर एक दूसरे से बहस करने लगे.
मास्टर जी ने उन्हें शांत कराते हुए कहा,“ठहरो,अब तुम दोनों अपने अपने स्थान बदल लो और फिर बताओ की गेंद किस रंग की है ?”दोनों ने ऐसा ही किया,पर इस बार उनके जवाब भी बदल चुके थे। राहुल ने गेंद का रंग काला तोअमित ने सफ़ेद बताया।

अब मास्टर जी गंभीर होते हुए बोले,बच्चों ये गेंद दो रंगो से बनी है और जिस तरह यह एक जगह से देखने पे काली और दूसरी जगह से देखने पर सफ़ेद दिखती है उसी प्रकार हमारे जीवन में भी हर एक चीज को अलग अलग दृष्टिकोण से देखा जा सकता है। ये ज़रूरी नहीं है कि जिस तरह से आप किसी चीज को देखते हैं उसी तरह दूसरा भी उसे देखे.इसलिए अगर कभी हमारे बीच विचारों को लेकर मतभेद हो तो ये ना सोचें की सामने वाला बिलकुल गलत है बल्कि चीजों को उसके नज़रिये से देखने और उसे अपना नजरिया समझाने का प्रयास करें। तभी आप एक अर्थपूर्ण संवाद कर सकते हैं।

बुरे वक्त में क्या करें?

                   एक बार की बात है एक राजा था। वो विनम्र स्वभाव का था। लोगों की सेवा करना वो अपना धर्म समझता था। एक बार उस राजा के पास एक ...