Saturday, October 6, 2018

No Pain No Gain (किस तरह जिंदगी आपको बदलने का मौका देती है?)

बिना मुश्किलों से गुजरे कुछ हासिल नहीं होता 

                     एक बार की बात है। एक गांव में एक बहुत प्रसिद्ध मूर्तिकार रहता था। वो स्वभाव से बहुत ही उदार था। उसकी प्रसिद्धि इतनी थी कि लोगों का मानना था कि वो जिस पत्थर को छू लेता है वो एक बेहतरीन मूर्ति में तब्दील हो जाता है।



                     मूर्तिकार रोज अपने कार्य के लिए शहर जाया करता था। एक दिन की बात है वो रोज की ही तरह शहर जा रहा था। उस दिन धूप बहुत ज्यादा थी। उस गर्मी से परेशान होकर उसने थोड़ा आराम करने का निश्चय किया।



                     थोड़ी दूर पर ही एक बड़ा पेड़ देखकर वो उसकी छाया में आराम करने के लिए बैठ गया। कुछ समय आराम करने के बाद उसे लगा कि उसे अपना समय व्यर्थ नहीं जाने देना चाहिए। ये सोचकर उसने अपने थैले से अपने औज़ार निकाले और पास ही में पड़े एक पत्थर को उठाया। और एक सुंदर कृति बनाने के उद्देश्य से उस पर चोट मारने लगा। जैसे ही पत्थर को हथोड़े से पहली चोट पड़ी वो दर्द भरी आवाज़ में करहाने लगा। और दूसरी चोट पड़ते ही वो चिल्लाया , " नहीं मुझे मत मारो। मैं जैसा हूँ मुझे वैसा ही छोड़ दो। मैं नहीं बदलना चाहता। मैं जैसा हूँ वैसा ही अच्छा हूँ।"


                      उस पत्थर की उस पीड़ा को देखकर उसने उसे उसकी जगह पर वापस रख दिया। इस पर वो पत्थर बहुत खुश हुआ।



                      मूर्तिकार ने उसी के बगल में पड़ा दूसरा पत्थर उठाया। और एक सुंदर मूर्ति बनाने की उद्देश्य से उस पर चोट मारना शुरू किया। इस पत्थर ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। वो चुप-चाप रहा। कुछ समय बाद उस मूर्तिकार ने अपने कौशल का प्रयोग कर के भगवान की एक सुंदर मूर्ति का निर्माण कर दिया। समय भी काफी बीत चुका था और अब धूप भी हल्की हो गयी थी। उस मूर्तिकार ने बनाई गई उस मूर्ति को उस पेड़ के नीचे रखा और अपने काम पर चल दिया।




                   

                      धीरे-धीरे समय बीता। एक दो महीने बाद वो मूर्तिकार उसी रास्ते से गुजर रहा था। उसे एक पेड़ के चारों ओर बहुत भीड़ दिखी। अब ये पता लगाने कि वहां क्या चल रहा है वो उस पेड़ की ओर बढ़ा। जैसे ही वो पेड़ की नजदीक पहुँचा उसे याद आया कि ये तो वहीं पेड़ है जिसके नीचे एक दिन उसने आराम किया था। भीड़ का कारण जानने के लिए वो भीड़ के समीप गया। वहां देखा तो वहाँ उस मूर्ति की पूजा हो रही थी। वो मूर्ति वही थी जो उस मूर्तिकार ने बनाई थी। उसके गुणगान किये जा रहे थे। उस पर फूल चढ़ाये जा रहे थे। फिर उसकी नज़र उसके पास ही पड़े अन्य पत्थर पर पड़ी। वो वह पत्थर था जिसे उस मूर्तिकार ने उस दिन मूर्ति बनाने की उद्देश्य से सबसे पहले उठाया था लेकिन उसने थोड़ी सी चोट पड़ने पर करहाना शुरू कर दिया था। और खुद को बदलने से इनकार कर दिया था। उस पत्थर पर लोग नारियल फोड़ कर उस सुंदर मूर्ति को चढ़ा रहे थे।




               Ladies and gentlemen, इस मूर्तिकार की तरह ही ईश्वर भी एक मूर्तिकार की ही तरह सभी को सुंदर और योग्य बनाने के लिए अलग-अलग तरह से चोट मारता है। पर हम में से कुछ लोग उसकी चोट से डरकर, उस से होने वाले दर्द से डर कर खुद को बदलने से इनकार कर देते है। और उसी स्थिति में रहना पसंद करते है जिसमें  वो पहले से होते है। और इसी तरह गुमनामी में हम पूरी जिंदगी गुजार देते है। तो दोस्तों अगर आप चाहते है कि आप सबसे अलग कुछ कर दिखाए तो ईश्वर द्वारा दी जा रही चोट को स्वीकार करिये और खुद को बदलते रहिये।





आपको आपके सुंदर भविष्य के लिए शुभकामनाएं।
धन्यवाद।




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